मेरी आसान जिंदगी की कहानी सुनो तुम,
धुआँ होती खैरियत की ज़बानी सुनो तुम,
मैंने ख़ुद को खुद में अकेले दफ़नाया है,
जाने कितनी दफ़ा जिंदा जलाया है,
सब कुछ लुटा कर जो एक बार जीये थे,
उन चंद लम्हों की नुक़सानी सुनो तुम...
ख़ौफ़ भी नहीं होता अब इस ख़याल से,
कि कोई रस्ता नहीं निकलता इस जाल से,
दर्द ज़रा रूह और ज़रा वक़्त काटता है मेरा,
अब तो रास आ गया है, हैरानी सुनो तुम...
कोई घाव नहीं हैं, कोई निशान नहीं हैं,
उस नज़र से देखें तो हम परेशान नहीं हैं,
ज़माने से पूछ बेठो कि लगते कौन हैं हम,
और फिर ये ज़ालिम बदनामी सुनो तुम...
मेरी आसान जिंदगी की कहानी सुनो तुम..!