हाँ अकेली हो गयी हूँ मैं,
तुम साथ निभाने आओगे क्या..?
हाँ टूट के बिखर रही हूँ मैं,
तुम जोड़ कर समेटने आओगे क्या..?
हाँ मर रही हूँ मैं,
तुम जीने की वजह बनोगे क्या..?
हाँ सुली चढ़ रही हूँ मैं,
तुम मेरी बर्बादी पर आओगे क्या..?
हाँ कफ़न ओढ़ रही हूँ मैं,
तुम मेरे इस दिदार पर आओगे क्या..?
हा मेरी कब्र सज रही है,
तुम वहा अपना घर बनाओगे क्या..?
हाँ हमेशा के लिए सो रही हूँ मैं,
तुम उस ज़मीन से सिर लगा कर सोओगे क्या..?
हाँ ज़िन्दगी ख़त्म हो रही हैं मेरी,
तुम मेरे लिए रोओगे क्या..?