मोहब्बत मेरी जब दूर होती है, वह बेहद याद करती है,
मिलती है जब सरे राह, फिर आँखें संवाद करती है,
हवा इश्क की उसकी, मुझमें सर सर सरती है,
रस भरी बातों की मिठास, उसके लबों से निकलती है,
रूप सौंदर्य देखो उनका, कुमुद में चाँदनी चमकती है,
कारोबार उसका कुछ ऐसा, जैसे निर्मल गंगा बहती है,
मोहिनी छवि चंचल चित्त, खुद में उलझती रहती है,
खुशबू उसकी हर घड़ी, मुझमें महकती रहती है,
छिड़को ना मुझको खुद पर, बार-बार मुझसे कहती है,
शीशी में इत्र सी है वह, मेरे लिबास में हरदम रहती है...