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Josh par aayi mohabbat sar katane ke liye

जब उठी शमशीरे ज़ालिम ज़ुल्म ढाने के लिए
जोश पर आई मुहब्बत सर कटाने के लिए

आज फिर मेरी नज़र उनकी नज़र से मिल गई
मुद्दतें लग जाएंगी अब होश आने के लिए

तेरी ख़ातिर जाने किस किस से मुहब्बत की गई
मेरे हमदम एक तेरा प्यार पाने के लिए

इस लिए मुर्शिद के दर पर का रहा हूं दोस्तों
ज़ख्म ए दिल होते नहीं सब को दिखाने के लिए

एक बूढ़े बाप ने ख़ुद को भी गिरवीं रख दिया
सिर्फ अपनी बेटियों के घर बसाने के लिए 

मुद्दतों के बाद कैसे मुस्कुराए हो निज़ाम
क्या उन्हें फुर्सत नहीं थी याद आने के लिए

Nizam Naushahi By : Nizam Naushahi

Mohabbat Shayari Views - 72 23rd Jul 2025
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Dil me hoti rahi ek kasak dekhiye

दिल में होती रही इक कसक देखिए
रूह भी तो रही है सिसक देखिए

शांत तन और है जल उठा दिल मिरा
वक़्त और टीस की ये धधक देखिये

उसको जंजीर हो चाहे कंगन मिले
आप बस बेबसी की चनक देखिये

आपकों करना क्या, कब गया, क्यूं गया
बस हुजुर, आप बनती सड़क देखिये

ना दुपट्टा लूँगी, मेरा तन पाक है
वहशी आँखे हि है जब तलक, देखिये

Manisha Singh By : Manisha Singh

Paigaam Shayari Views - 93 23rd Jul 2025
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Be-wafa jab pukara gaya

बे-वफ़ा जब पुकारा गया
उनकी जानिब इशारा गया

मै जुनूं ज़ाद देखो ज़रा
उस गली में दोबारा गया

ये मुनाफे की शय ही नहीं
इश्क़ में सिर्फ हारा  गया

देखिए क़त्ल करके हमें
हमको क़ातिल पुकारा गया

लो उठी उनकी तेग-ए-नज़र
कोई बे मौत मारा गया

चाहिए था खिलौना उन्हें
मैं जमीं  पर उतारा गया

क्या कहूं जब से जां तू गई
चैन भी तो हमारा गया

था सहारा तेरी दीद का
अब तो वो भी सहारा गया

बाद तेरे गुज़ारा न था
फिर भी देखो गुज़ारा गया

Ishtiyaque Ahmad By : Ishtiyaque Ahmad

Zindagi Shayari Views - 65 23rd Jul 2025
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saanwli si ek ladki pyar yun jatati thi

सांवली सी एक लड़की प्यार यूं जताती थी
वो मेरी  मुहब्बत  के गीत गुनगुनाती थी 

जैसे उसकी नजरों में कोई नाखुदा था मैं
कितनी सादगी से वो ख्वाहिशें बताती थी

मुझसे वो झगड़ती थी जीत का जुनूं लेकर
और फिर मेरी खातिर हार मान जाती थी

ये गुमान होता था आसमान हूं जैसे
मां मेरी हथेली पर चांद जब बनाती थी

ऐ निज़ाम मैं उसको मिल नहीं सका फिर भी
मेरी मां को जाने क्यूं अपनी मां बताती थी

Nizam Naushahi By : Nizam Naushahi

Maa Shayari Views - 70 16th Jul 2025
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Kitna Dushwaar Hai Bharam Rakhna

कितना दुशवार है भरम रखना
ज़िंदगी सोच कर क़दम रखना

जिस प तुमको यकीं ज़ियादा हो
उस से उम्मीद कम से कम रखना

जब बुज़ुर्गों से तुम मुख़ातिब हो
अपने सर को ज़रा सा ख़म रखना

हर दुआ होगी फिर तेरी मक़बूल
शर्त ये है के चश्म नम रखना

दौरे हाज़िर में ए मेरे मौला
अपने आरिफ़ का तू भरम रखना

Arif Mehmoodabadi By : Arif Mehmoodabadi

Zindagi Shayari Views - 96 15th Jul 2025
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