सांवली सी एक लड़की प्यार यूं जताती थी
वो मेरी मुहब्बत के गीत गुनगुनाती थी
जैसे उसकी नजरों में कोई नाखुदा था मैं
कितनी सादगी से वो ख्वाहिशें बताती थी
मुझसे वो झगड़ती थी जीत का जुनूं लेकर
और फिर मेरी खातिर हार मान जाती थी
ये गुमान होता था आसमान हूं जैसे
मां मेरी हथेली पर चांद जब बनाती थी
ऐ निज़ाम मैं उसको मिल नहीं सका फिर भी
मेरी मां को जाने क्यूं अपनी मां बताती थी